ढोल, गंवार , शूद्र ,पशु ,नारी सकल ताड़ना के अधिकारी
एक वाक्य है…… "बच्चों को कमरे में बंद रखा गया है"
दूसरा वाक्य है…. "बच्चों को कमरे में बन्दर खा गया है"
हालाँकि… दोनों वाक्यों में … अक्षर हुबहू वही हैं… लेकिन… दोनों वाक्यों के भावार्थ पूरी तरह बदल चुके हैं…!
"ढोल, गंवार , शूद्र ,पशु ,नारी सकल ताड़ना के अधिकारी "
ठीक ऐसा ही रामचरित मानस की इस चौपाई के साथ हुआ है…
कुछ लोग इस चौपाई का अपनी बुद्धि और अतिज्ञान के अनुसार… विपरीत अर्थ निकालकर तुलसी दास जी और रामचरित मानस पर आक्षेप लगाते हुए अक्सर दिख जाते है…
इस चौपाई में "ताड़ना" का अर्थ अधिकाँश लोगों ने मारना, पीटना या प्रताड़ित करना ही किया है... और अज्ञानवश ऐसा भावार्थ किया है कि ढोल, गंवार, शूद्र और स्त्रियाँ निर्दोष होने पर भी दण्डित होने के लायक है... लेकिन ऐसा मानने वालों को पता होना चाहिए कि तुलसीदास का जन्म उत्तर प्रदेश के बांदा जिले में हुआ था . जो बुंदेलखंड में आता है . तुलसीदास वहीँ बड़े हुए थे . बुन्देली भाषा में " ताड़ना " का अर्थ . घूरना. टकटकी लगाकर देखना...
इस तरह से चौपाई का सही अर्थ है कि . ढोल, अशिक्षित, पिछड़े लोग और स्त्रियों का भली भांति से ध्यान रखने की जरुरत है . अर्थात जैसे ढोल जरासी गलती से फूट जाता है और उसे ध्यान से बजाने की जरुरत होती है, वैसे ही... अशिक्षित, पिछड़े शूद्र मजदूर और महिलाओं पर खास ध्यान रखना चाहिए...
इस चौपाई में जो बात कही गयी है वह प्रभु श्री राम चन्द्र जी के नाराज होने पर समुद्र कह रहा है...और इसमे कहा गया है ताड़ना न कि प्रताड़ना, श्री राम चरित मानस अवधि बोली मे लिखी गयी है...ताड़ना का अर्थ होता है, देखभाल करना/ध्यान देना/ध्यान रखना…गांव देहात में आज भी जब लोग बाहर जाते हैं तो अपने परिचितों से कहते हैं- भाई घर ताड़ते रहना चोरी न हो जाये...
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