सैनी | Saini
सैनी उत्तर भारत में पाई जाने वाली एक जाति है। सैनी जाति का इतिहास गौरवशाली, महान और प्राचीन है। स्वतंत्रता आंदोलन और स्वतंत्रता मिलने के बाद देश के निर्माण में सैनी समाज का योगदान सराहनीय रहा है। यह परंपरागत रूप से जमींदार और किसान थे। एक वैधानिक कृषि जनजाति और एक निर्दिष्ट मार्शल रेस के रूप में सैनी मुख्य रूप से कृषि और सैन्य सेवाओं में लगे हुए थे। आजादी के बाद उन्होंने विविध प्रकार के नौकरी, पेशा और रोजगार में शामिल होने लगे। अंग्रेजों ने विभिन्न जिलों में कुछ सैनी जमींदारों को जैलदार या राजस्व संग्राहक के रूप में नियुक्त किया था। आइए जानते हैं सैनी जाति का इतिहास सैनी शब्द की उत्पत्ति कैसे हुई?
सैनी किस वर्ग में आते हैं?
सैनी जाति को पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश, दिल्ली और उत्तर प्रदेश राज्यों में अन्य पिछड़ा वर्ग के अंतर्गत वर्गीकृत किया गया है। इन राज्यों में इन्हें ओबीसी कोटे के तहत सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में आरक्षण का लाभ मिलता है।
सैनी कहां पाए जाते हैं?
सैनी मुख्य रूप से उत्तर भारतीय राज्यों पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर, चंडीगढ़, दिल्ली, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में निवास करते हैं।
सैनी किस धर्म को मानते हैं?
सैनी हिंदू और सिख दोनों धर्मों को मानते हैं, लेकिन दोनों एक दूसरे की धार्मिक परंपराओं और मान्यताओं का सम्मान करते हैं। यहां यह बता देना जरूरी है कि अधिकांश सैनी हिंदू हैं जिन्हें अपने वैदिक सनातनी अतीत और परंपराओं पर गर्व है।
15वीं सदी में सिख धर्म के उद्भव के साथ कई सैनियों ने सिख धर्म अपना लिया। आज पंजाब में सिख सैनियों की बड़ी आबादी है। हिंदू और सिख सैनियों में सीमांकन की रेखा बहुत धुंधली है। यह आपस में सहजता से अंतर विवाह करते हैं।
सैनी शब्द की उत्पत्ति कैसे हुई ?
सैनी शब्द की उत्पत्ति राजा “शूरसेन” के नाम से हुई है। वह एक पराक्रमी वीर योद्धा थे। कभी वर्तमान के मथुरा नगर पर राजा शूरसेन का शासन हुआ करता था। मथुरा प्राचीन भारत के 16 जनपदों में से एक था। शूर शब्द का शाब्दिक अर्थ वीर बहादुर या योद्धा होता है।
राजा शूरसेन
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