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आज ही क्यों नहीं ?

आज ही क्यों नहीं ?  एक बार की बात है कि एक शिष्य अपने गुरु का बहुत आदर-सम्मान किया करता था |गुरु भी अपने इस शिष्य से बहुत स्नेह करते थे लेकिन  वह शिष्य अपने अध्ययन के प्रति आलसी और स्वभाव से दीर्घसूत्री था |सदा स्वाध्याय से दूर भागने की कोशिश  करता तथा आज के काम को कल के लिए छोड़ दिया करता था | अब गुरूजी कुछ चिंतित रहने लगे कि कहीं उनका यह शिष्य जीवन-संग्राम में पराजित न हो जाये|आलस्य में व्यक्ति को अकर्मण्य बनाने की पूरी सामर्थ्य होती है |ऐसा व्यक्ति बिना परिश्रम के ही फलोपभोग की कामना करता है| वह शीघ्र निर्णय नहीं ले सकता और यदि ले भी लेता है,तो उसे कार्यान्वित नहीं कर पाता| यहाँ तक कि  अपने पर्यावरण के प्रति  भी सजग नहीं रहता है और न भाग्य द्वारा प्रदत्त सुअवसरों का लाभ उठाने की कला में ही प्रवीण हो पता है | उन्होंने मन ही मन अपने शिष्य के कल्याण के लिए एक योजना बना ली |एक दिन एक काले पत्थर का एक टुकड़ा उसके हाथ में देते हुए गुरु जी ने कहा –‘मैं तुम्हें यह जादुई पत्थर का टुकड़ा, दो दिन के लिए दे कर, कहीं दूसरे गाँव जा रहा हूँ| जिस भी लोहे की वस...

एक पिता और उसके चार पुत्र

रामधर के चार बेटे थे। चारो का विवाह हो चुका था। रामधर के पास बहुत सी जमीन-जायदाद थी तो जायदाद का बटवारे करने के लिए चारो भाइयों ने पंचायत बुलाई।  सरपंच बोला : रामधर जी आपके चारो बेटे चाहते है कि आपके जायदाद के चार हिस्से कर दिए जाए। और आप तीन तीन महीने हर एक बेटे के पास रहेंगे। क्या आप अपने बच्चों की इन बातो से सहमत हैं…? तो इस पर बड़ा बेटा बोला :- अरे सरपंच जी इसमे पिताजी से क्या पूछना। हम चारो भाई उन्हें तीन-तीन महिने एक साथ रखने के लिए तैयार है। बस अब आप इस जायदाद का बराबर बंटवारा हम चारों में कर दीजिये। रामधर ये सब सुन रहे थे और वो अचानक उठे और बोले – सुनो सरपंच….ये सब कुछ मेरा है तो फैसला तुम नही मैं करूंगा। और मेरा फैसला ये है कि, ‘इन चारो को मै बारी बारी से अपने घर में तीन-तीन महीने साथ रखूंगा। बांकी का समय ये कैसे गुजारेंगे ये अपनी व्यवस्था खुद कर ले, क्योंकि Ye जायदाद मेरी है।’ पिता का फैसला सुन पंचायत और चारो बेटो का मुह खुला का खुला रह गया!  इस कहानी से मिलने वाली प्रेरणादायक सीख: ये छोटी सी मोटिवेशनल कहानी हमे सिखाती है की फैसला औलाद को नहीं हमेशा माँ बाप को करना च...

सक्सेसफुल लोगों की ऐसी होती है डेली लाइफ रूटीन, आप भी कर लीजिए फॉलो, सफलता चूमेगी कदम

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    हम आपको बताएंगे दुनिया के सफल लोगों की डेली लाइफ में क्या रूटीन वह फॉलो करते हैं, जो उन्हें एक कामयाब इंसान बनाती है ताकि आप भी उन रूल्स को फॉलो कर देश के शीर्ष सफल लोगों में अपनी भी जगह बना सकें. Success mantra in life : सफल व्यक्ति की हमें केवल दौलत शोहरत नजर आती है इसके पीछे की कड़ी मेहनत नहीं. उस व्यक्ति ने उस ऊंचाई तक पहुंचने के लिए क्या कुछ किया है इस पर चर्चा कम ही लोग करते हैं. लेकिन आज हम इस लेख में इसी से जुड़ी कुछ बातें करने जा रहे हैं साथ ही कुछ टिप्स भी दे रहे हैं जो आपके लक्ष्य को प्राप्त करने में आपकी मदद करेगी. हम आपको बताएंगे दुनिया के सफल लोगों की डेली लाइफ में क्या रूटीन वह फॉलो करते हैं, जो उन्हें एक कामयाब इंसान बनाती है ताकि आप भी उन रूल्स (life rule) को फॉलो कर देश के शीर्ष सफल लोगों में अपनी भी जगह बना सकें. सक्सेसफुल होने के लाइफ मंत्र - अगर आप जीवन में सफल होना चाहते या चाहती हैं तो सबसे पहले सुबह जल्दी उठने और समय से सोने की आदत बनाएं. कोशिश करें सूर्योदय से पहले बिस्तर छोड़ देने की. देर तक सोना शारीरिक और मानसिक सेहत के लिए ठीक नहीं ...

दर्जी और हाथी की कहानी

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दर्जी  और  हाथी  की कहानी  एक गाँव में एक दर्जी रहता था। वह नेकदिल, दयालु और मिलनसार था। सभी गाँव वाले अपने कपड़े उसी को सीने दिया करते थे। एक दिन दर्जी की दुकान में एक हाथी आया। वह भूखा था। दर्जी ने उसे केला खिलाया। उस दिन के बाद से हाथी रोज दर्जी की दुकान में आने लगा। दयालु दर्जी उसे रोज केला खिलाता। बदले में हाथी कई बार उसे अपनी पीठ पर बिठाकर सैर पर ले जाता। दोनों की घनिष्ठता देखकर गाँव वाले भी हैरान थे। एक दिन दर्जी को किसी काम से बाहर जाना पड़ा। उसने अपने बेटे को दुकान पर बिठा दिया। जाते जाते वह उसे केला देते हुए कह गया कि हाथी आये, तो उसे खिला देना। दर्जी का बेटा बड़ा शरारती था। दर्जी के जाते ही उसने केला खुद खा लिया। जब हाथी आया, तो उसके शैतानी दिमाग में एक शरारत सूझी। उसने एक सुई ली और उसे अपने पीछे छुपाकर हाथी के पास गया। हाथी ने समझा कि वह केला देने के लिए आया है। इसलिए अपनी सूंड आगे बढ़ा दी। उसके सूंड बढ़ाते ही दर्जी के बेटे ने उसे सुई चुभो दी। हाथी दर्द से बिलबिला उठा। ये देखकर दर्जी के लड़के को बड़ा मज़ा आया और वह ताली बजाकर ख़ुश होने लगा। दर्द से बिलबिला...

पंचमहाभूतों का महाविज्ञान

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नीबकरौरी बाबा के पास एक सज्जन आते थे बंबई से। जब आते तो कुछ न कुछ मंहगा गिफ्ट लाते थे। उन दिनों बाबा इटावा के पास नींबकरौरी गांव में साधना करते थे।  अब होता ये कि वो सज्जन जो उपहार लाते और जैसे ही बाबा को सौंपते तो बाबा तत्काल उसे अग्निकुंड में डाल देते। उनका मंहगा गिफ्ट जलकर खाक हो जाता। साथ में ये और कहते कि अग्नि देवता इसकी अच्छे से रखवाली करेंगे। इसलिए उनके हवाले कर दिया है।  ऐसे कई और प्रकरण हुए थे जब उनको मिलनेवाले उपहार वो अग्निकुंड में डाल देते और कहते कि अग्नि देवता इसे अपने पास सुरक्षित रखेंगे। वह अग्निकुंड आज भी नींबकरौरी गांव में मौजूद है, हालांकि उसको चारों ओर से घेरकर ताला लगा दिया गया है।  अब हुआ ये कि एक बार उस व्यक्ति से रहा नहीं गया। अपने ही लाये उपहार को इस तरह से जलता देखकर उसे दुख हुआ। सोचा कि बाबा को उपयोग न करना हो तो किसी को दे सकते हैं। इस तरह जला क्यों देते हैं? मन में सोचा जरूर लेकिन मुंह से बोला कुछ नहीं।  बाबा से क्या छुपता। वो भक्त की शंका भांप गये। बोले: तेरा उपहार जला नहीं है। अग्नि देवता के पास सुरक्षित है। इतना कहकर उन्हो...

ढोल, गंवार , शूद्र ,पशु ,नारी सकल ताड़ना के अधिकारी

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एक वाक्य है…… "बच्चों को कमरे में बंद रखा गया है" दूसरा वाक्य है…. "बच्चों को कमरे में बन्दर खा गया है"  हालाँकि… दोनों वाक्यों में … अक्षर हुबहू वही हैं… लेकिन… दोनों वाक्यों के भावार्थ पूरी तरह बदल चुके हैं…! "ढोल, गंवार , शूद्र ,पशु ,नारी सकल ताड़ना के अधिकारी " ठीक ऐसा ही रामचरित मानस की इस चौपाई के साथ हुआ है… कुछ लोग इस चौपाई का अपनी बुद्धि और अतिज्ञान के अनुसार… विपरीत अर्थ निकालकर तुलसी दास जी और रामचरित मानस पर आक्षेप लगाते हुए अक्सर दिख जाते है… इस चौपाई में "ताड़ना" का अर्थ अधिकाँश लोगों ने मारना, पीटना  या प्रताड़ित करना ही किया है... और अज्ञानवश ऐसा भावार्थ किया है कि ढोल, गंवार, शूद्र और स्त्रियाँ निर्दोष होने पर भी दण्डित होने के लायक है ... लेकिन ऐसा मानने वालों को पता होना चाहिए कि तुलसीदास का जन्म उत्तर प्रदेश के बांदा जिले में हुआ था . जो बुंदेलखंड में आता है . तुलसीदास वहीँ बड़े हुए थे . बुन्देली भाषा में " ताड़ना " का अर्थ . घूरना. टकटकी लगाकर देखना ... इस तरह से चौपाई का सही अर्थ है कि . ढोल, अशिक्षित, पिछड़े लोग और...

नया साल | New Year

पहले यह तो तय करलो कि जनवरी साल का पहला और दिसम्बर आखिरी महीना है .... फिर मना लेना Happy New Year. ना तो जनवरी साल का पहला मास है और ना ही 1 जनवरी पहला दिन .......! जो आज तक जनवरी को पहला महीना मानते आए हैं वो जरा इस बात पर विचार करिए ...... सितंबर .... सातवां , अक्टूबर .... आठवां , नवंबर .... नौवां और दिसंबर .... दसवां महीना होना चाहिए। इस हिसाब से फरवरी माह साल का आखिरी और मार्च साल का पहला दिन होना चाहिए। हिन्दी में सात को सप्त , आठ को अष्ट कहा जाता है , इसे अग्रेज़ी में Sept तथा Oct कहा जाता है .... इसी से September तथा October बना , नवम्बर में तो सीधे - सीधे हिन्दी के " नव " को ही ले लिया गया है तथा दस अंग्रेज़ी में "Dec" बन जाता है जिससे December बन गया ..... इसके कुछ प्रमाण हैं ..... जरा विचार करिए कि 25 दिसंबर यानि क्रिसमस को X-mas क्यों कहा जाता है ...? इसका उत्तर ये है की "X" रोमन लिपि में दस का प्रतीक...